Our Populer Blogs

Popular topics for bloggers to discuss include personal development and self-improvement, sadness, food and happiness, fashion and beauty, health and wellness, sanatan tecnique and family life, and technology and digital media.

Our Populer Blogs

धर्म की दृष्टि से नवरात्र का मतलब

भारत में ऐसा कोई नही मिलेगा जो किसी न किसी धर्म से बँधा नही हो! हमारे यहा धर्म के बारे में कहा जाता है कि‘यतो अभ्युदय नि:श्रेयस सिद्धि: स धर्म:।’ समान्य अर्थो में देखा जाए तो जिस कार्य को करने से हम सांसारिक और पारलौकिक उन्नति सिद्ध कर सकते हैं।परलौकिक सम्पदा और भौतिक उन्नति के माध्यम से अनेक विषयों के उपभोग से सुख प्राप्त होता हैं। आपका जीवन चलता रहे और आपको आत्मज्ञान, अनात्मबंध से मोक्ष मिल‌ जाए जाए, वही धर्म हैं। देखा जाए तो समान्यत: अभ्युदय सहज जीवन प्रवाह का नाम है। इसमें भोग शामिल है किन्तु ज्ञान आपको पुर्ण करता हैं। धर्म पूर्णता का दुसरा नाम भी हैं। जब श्री कृष्ण कहते है कि “धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित:” इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि इस नश्वर संसार में अगर कुछ टिकाऊ हैं तो वह धर्म हैं। गिरिधारी जब यह कहते कि धर्म को मारने वाले को धर्म खुद नाश कर देता हैं। इसके साथ वह कहते है कि अगर आप धर्म की रक्षा के लिए खड़े होते हैं तब धर्म आपकी रक्षा करता हैं।धर्म हर कालखंड में अजेय हैं।उससे परास्त करने का दुस्साहस बहुतों ने किया और भर मुँह माटी बकोट कर माटी में मिल गये। नवरात्रि धर्म के विजय कि गाथा हैं। यह धर्म के जागृत चेतना का उत्सव हैं। नवरात्रि का उत्सव ईश्वर के नारी रुप को समर्पित हैं।नवरात्रि से नये रात का बोध होता हैं। वह नया रात, अपने शक्ति और सामर्थ्य को पहचानने के लिए हैं। रात को जब हम घर लौटते हैं तब मन को शान्त चाहिए हैं। मन को शक्ति चाहिए होती हैं। मन को वह ज्ञान चाहिए होता हैं जिसके दम पर वह नये सुबह में अपने कर्मपथ पर विजय प्राप्त कर सके। सनातन संस्कृति में शान्ति, शक्ति और ज्ञान के केन्द्र में मूल्य रुप से मातृशक्ति हैं। मातृशक्ति की अराधना इस धरती पर पूजा का सबसे पुराना स्वरुप हैं। सनातन संस्कृति में जीवन माँ के गर्भ से शुरु होकर धरती माँ कि गोद में खत्म हो जाता हैं।भारत में आप उतर से दक्षिण चाहे पुरब से पश्चिम कही भी चले जाइए आपको कुछ दिखे या नही दिखे परन्तु देवी का मंदिर जरुर दिखेगा। हमारे यहाँ नारियों को आदर देने का इतिहास बहुत पुराना हैं। हमारे यहाँ देवी के स्वरुपों को चुनने कि आजादी हैं। कुल देवी, इष्टदेवि से ग्राम देवि तक के चलन का रिवाज हैं। माँ का दिव्य शक्ति स्वरुप लेकर अवतार लेना और मधु-कैटभ, शुम्भ-निशुम्भ और महिषासुर जैसी नकरात्मक शक्तियो के प्रतिक, इन असुरों पर विजय प्राप्त करके, सनातन सत्य और समाजिक शान्ति को पुन: स्थापित करने कि गौरव गाथा को हम सब इन‌ दिनों में याद करते हैं। आज के परिवेश में भी अनेक रुपों में समाज में असुरी प्रवृत्तिया मौजूद है जो‌ कि अनेक प्रकार के छद्म रुपों को रचने में माहिर हैं। इन सभी से सावधान रहकर इनको निस्तेज करना चाहिए, जिससे समाज में समरसता और शान्ति बनी रहे। माँ का वात्सल्य हम सभी पर बना रहे! माँ हम‌ सभी को आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति से समृद्ध करे! दुष्टों का नाश हो! विश्व का कल्याण हो!

Our Populer Blogs

सनातन जीवन पद्धति अपनाने का लाभ

देखा जाये तो सनातन जीवन पद्धति एक कला है , एक ऐसी आर्ट जिसके बारे में कहा गया है कि सा कला या विमुक्तये अर्थात् “कला वह है जो बुराइयों के बन्धन काटकर मुक्ति प्रदान करती है”।जीवन की हर प्रकार के दु:खो से मुक्ति का यत्न सनातन जीवन पद्धति के पास है। यह विद्यार्थी, युवा, प्रोढ़, तथा वृद्ध सभी के लिए सन्मार्ग दिखाता है। भय, द्वेष, ईर्ष्या, द्वन्द, छल सबसे परे एक मार्ग खोलता है जिसपर चलकर साधक अपने मंजिल को पाता है। वैसे सनातन जीवन पद्धति के अंतर्गत सिखाये जाने वाले ध्यान, योग,जप, प्राणायाम आदि करने से बहुत लाभ होते हैं जिनमें से कुछ निम्नांकित कुछ दिया जा रहा है; 1. नित्य नियमपूर्वक सनातन जीवन पद्धति को अपनाने से करने से चित्त की चंचलता समाप्त होती है । धीरे-धीरे एकाग्रता में वृद्धि होती है ।2. हर प्रकार के डर और भय से साधक मुक्त होता है।3.भगवान के प्रति आस्था, प्रेम, श्रद्धा, भक्ति और अपनापन उत्पन्न होता है ।4. अंतर्प्रेरणा जाग्रत होती है, जो जीव को प्रति पल सत्य पथ पर चलने की प्रेरणा देती है ।5. जन्मों-जन्मों के कुसंस्कार खत्म‌ होने लगते हैं।6. नकारात्मक विकार समाप्त होने लगते हैं।7. मुख पर अनुपम तेज, आभा और गम्भीरता आ जाती है।8. मन में पवित्र भावनाएँ, उच्च विचार एवं सबके प्रति सद्भाव आदि सात्विक गुणों की वृद्धि होती है।9. संकल्प-शक्ति सुदृढ़ होकर मन की आंतरिक शक्ति बढ़ जाती है ।मन में असीम शान्ति का अनुभव होता है।10. हृदय में शांति, संतोष, क्षमा, दया व प्रेम आदि सद्गुणों का उदय हो जाता है और उनका विकास होने लगता है ।11. सनातन जीवन पद्धति साधक में से सर्वांगीण उन्नति होती है जिसके फलस्वरुप से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं ।

Shopping Cart
Scroll to Top
× How can I help you?